हिंदी एव राष्ट्रीय चेतना--- 1-हिंदी कविताओं में राष्ट्रीय भक्ति भवना--
हिंदी एव राष्ट्रीय चेतना---
1-हिंदी कविताओं में राष्ट्रीय भक्ति भवना--
राष्ट्रीय चेतना प्रेम एव राष्ट्रिय भावना ही राष्ट्रीयता कहलाती है राष्ट्रीयता प्रभाव शाली राष्ट्रीयता का भाव है राष्ट्रीयता का सीधा संबंध जड़ भूमि से न होकर संस्कृति सभ्यता एव धर्म के प्रति गौरव देश की सामाजिक धार्मिक और राजनीतिक सुधार के प्रति सतत प्रयत्नशील वह राष्ट्रीय भावना है जो प्रवाहित एव प्रस्फुटित होती है।राष्ट्रीय भवना, सभ्यता ,संस्कृति ,बलिदान रंगभेद ,जातिगत भेद भवना राष्ट्रीयता के लिये देश अथवा राज्य का इकाई के रूप में होना आवश्यक है यह बात अलग है कि समय समय पर देश की सीमाएं घटती बढ़ती रहती है एव राष्ट्रीयता के परिपेक्ष्य में अंतर परिभाषित करता है।राष्ट्रीयता राष्ट्रीय भावना रंगभेद आदि से ऊपर उठ कर राष्ट्र के प्रति तन मन धन से समर्पित होना है।
साहित्य मानव जीवन का चिरंतन संबंध है साहित्य का सृष्टा मनुष्य है मनुष्य के लिये साहित्य ही दृष्टि है
किसी भी देश का साहित्य वहाँ की राजनीतिक सामाजिक आर्थिक धार्मिक आदि परिस्थितियों के परिणाम स्वरूप बनता एव बदलता है।
भारतीय राष्ट्रीयता में अंग्रेजों के संपर्क में आने के बाद दूरगामी परिवर्तन आया राष्ट्रीयता भारत के लिये नवीनतम अवधारणा का विश्वास थी 319 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत मे देश प्रेम राष्ट्रीय देश प्रेम भावना जागृत होने लगी थी शासन से प्रेरित भारतीयों के मन मे स्वाधीनता के भाव जन्म लेने लगा स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंसः ,स्वामी दयानंद सरस्वती, लोकहितवादी ,भारतेंदु हरिश्चंद्र, चिपलूणकर आभा मंडल के आभा के कवि मैदान में उतर आए इनके समूर्ण प्रयास राष्ट्रीयता का भाव जागरण करने के लिये समर्पित था।।
भारत महिमा का वर्णन #अरुण यह मधुमय देश हमारा# गीत भारत की महिमा का वर्णन है जिसमे भारतीय संस्कृति की गरिमा पूर्णतः झलकती है
प्रत्येक भारतीय को गर्व है कि उसने भारत भूमि पर जन्म लिया उसकी भावना देश प्रेम के स्वरूप में दृष्टिगोचर होती है।
उर्दू के कवियों ने भी देश प्रेम की भावना को ऊर्जा प्रदान कर अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है#सारे जहां से अच्छा हिंदुस्ता हमारा हम बुलबुले है इसकी यह गुलिस्तां हमारा#
निराला जी ने भी अपनी शैली की रचनाओं से मातृभूमि के लिये प्रेम प्रवाह का सांचार किया #भारती जय विजय करे ,कनक शस्य कमल करे#
भारत का अतीत सबृद्धशाली एव बैभवपूर्ण रहा है #कुछ बात तो है हस्ती मिटती नही हमारी सदियों रहा है दौरे जहां हमारा#
मौर्य विजय नामक ग्रंथ में सियारामशरण गुप्त चंद्रगुप्त की गाथा कथा के माध्यम से भारतीयों की वीरता का वर्णन किया #धीर बीर ये भारतीय होते है कैसे ,किसी देश ने मनुज नही देखे इनके जैसे#
रामायण एव महाभारत के बीरो का गौरवगान मैथिली शरण गुप्त ने किया है ।#अभिमन्यु षोडस वर्ष का फिर क्यो लड़े रिपु से नही ,क्या आर्य बीर बिपक्ष बैभव देखकर डरते कही#
दिनकर जी अतीत की को याद करते
पैरों पर ही पड़ी हुई ,मिथिला भीखारिणी सुकुमारी,तू पूछ कहां इसने खोई अपनी अनंत निधियां सारी#
हिंदी कविता में राष्ट्रीयता की भावना प्रमुख रही है 20वीं शताब्दी के आरम्भ में जब स्वाधीनता संग्राम में तेजी आई उसीके परिणाम स्वरूप हिंदी कविता में राष्ट्र प्रेम देश भक्ति आदि विषयों की प्रधानता हो गयी।इसी से प्रभावित होकर कवियों ने राष्ट्र प्रेम के गीत गाये।।
2-हिंदी उपन्यासों में राष्ट्रीयता--
साहित्य सदैव समाज का पथ प्रदर्शन करता है साहित्यकार समाज मे आदर्श एव नैतिक मूल्यों की दिशा दृष्टिकोण रखता है एव समाज को सुसंस्कारिक चेतना का मार्गदर्शन होता है प्राणि मात्र के मानस पटल पर राष्ट्रीयता कि भावना को सुदृढ एव व्यपाक स्वरूप प्रदान युगीन साहित्य के माध्यम से व्यक्त करता है ।
भारत मे राष्ट्रीय चेतना का आरम्भ मैकाले की शिक्षा नीति के साथ शुरू हुआ मैकाले की शिक्षा नीति ने भारतीयों को पाश्चात्य शिक्षा संस्कृति से परिचित करवाया जिसके कारण समाज मे स्वतंत्रता समानता और अभिव्यक्ति में खुलेपन ने जन्म लिया फलस्वरूप साहित्य भी साहित्य भी राष्ट्रीय चिंतन से प्रभावित होने लगा ।
भारतेंदु हरिश्चंद्र के लेखों नाटकों ने राष्ट्रीय एव राजनीतिक चेतना का प्रसार किया तो महाबीर प्रसाद द्विवेदी ने उसे सरस्वती के माध्यम से नया आयाम दिया मुंशी प्रेम चंद्र जी ने अपने रंग भूमि और कर्मभूमि जैसे उपन्यासों तथा कहानियों में तत्कालीन राजनीतिक स्थितियों को अपने पात्रों में उभरा मैथिली शरण गुप्त ,बाल कृष्ण शर्मा नवीन ,यशपाल, नरेश मेहता जैसे अनगिनत साहित्यकारों ने इस क्रम में महत्त्वपूर्ण कार्य किया।
साहित्यकार नरेश मेहता के उपन्यासों में जिस समय का वर्णन किया है तत्कालीन समाज देश की स्वतंत्रता के लिये संघर्ष रत था।उस समय भारतीय समाज राष्ट्रीय प्रेमानुराग एव आत्मोत्सर्ग की भवनाओं से भरा हुआ था समाज मे जो साहित्य लिखा जा रहा था वह राष्ट्रीय भवना से ओत प्रोत था।भारतीय राजनीति में गांधी जी के प्रवेश ने राष्ट्रीय संघर्ष को अत्यधिक प्रोत्साहित किया भारतीय राजनीति में स्वदेश अभिमान जाग्रत हो रहा था सभी स्वदेशी अपनाने लगे राष्ट्र के प्रति लोंगो के कर्तव्य को जाग्रत के विविध आयामो को सहिरीकारों द्वारा उपन्यासों के माध्यम से प्रेरित किया गया है।
3-हिंदी निबंधों में राष्ट्रीय भावना--
राष्ट्रवाद एक ऐसी अवधारणा है जिसमे राष्ट्र सर्वोपरि होता है राष्ट्र की प्राथमिकता होती है जो किसी भी राष्ट्र के नागरिकों के साझा पहचान को बढ़ावा देती है किसी भी राष्ट्र की उन्नति एव संपन्नता के लिये नागरिकों में सांस्कृतिक धार्मिक और भाषाई विविधता से ऊपर उठकर राष्ट्र के प्रति गौरव की भावना को मजबूती प्रदान करती है ।राष्ट्रवाद यानी राष्ट्र के प्रति समर्पण कि भावना का विकास राष्ट्र की एकजुटता के लिये आवश्यक होता है इसी कारण बचपन से स्कूलों में राष्ट्रगान का नियमित अभ्यास कराया जाता है।एव पाठ्य क्रम में देश के महान सपूतों वीरों एव स्वतंत्रता सेनानियों की गाथाओं का समावेश किया जाता है राष्ट्रवाद ही वह भावना है जो सैनिकों को देश की सीमा पर डटे रहने की प्रेरणा देता है राष्ट्रवाद के कारण ही देश का नागरिक अपने देश के लिये बड़ी से बड़ी कुर्वानी देने से पीछे नही हटते राष्ट्र वाद के ही कारण देश के नागरिक धर्म जाती आदि संकीर्ण मनोवृत्ति को त्याग कर देश हित मे साथ खड़े रहने की प्रेरणा देता है। हिंदी साहित्य में राष्ट्रीयता के जागरण जागृत के लिये अनेको निवन्ध लिखे गए जिनके माध्यम से राष्ट्रीय भावना को मजबूत करने का संकल्प के रूप में परिभाषित करना के अतिशयोक्ति नही होगी स्कूलों में निबन्ध प्रतियोगिताओं के माध्यम से शुरू से ही राष्ट्र के भविष्य के नागरिकों में राष्ट्रीय चेतना का जागरण किया जाना हिंदी साहित्य के लिये असाधरण राष्ट्रीय उपलब्धि के रूप में सत्त्यार्थ है।स्पष्ठ है कि देश के नागरिकों में पूर्ण परिपक्व राष्ट्रवाद का शसक्त माध्यम निबंध है एव रहेगा।।
4-आत्म कथाओं में राष्ट्रीयता--
आत्म कथा के माध्यम से व्यक्ति तत्कालीन समय एव सामाजिक परिवेश परिस्थितियों के संदर्भ में भाषा कर्म अपने विचारों एव व्यक्तित्व की गहन पड़ताल करता है।आत्म कथा साहित्य की बेहद जटिल और जोखिम भरी विधा है जोखिम इसलिये आत्म में सदैव तार्किक दूरी पर खड़ा होना होता है हिंदी साहित्य में परिस्थितियों से मनुष्य में निखार आता अपनी आंतरिक शक्ति से परिस्थितियों पर विजय पाते है वही लोग आदर्श मानव कहलाते है।पहली आत्मकथा बनारसी दास जैन कृत अर्ध कथानक है स्वामी दयानंद सरस्वती की आत्मचरित्र रामप्रसाद विस्मिल की फांसी से दो दिन पूर्व जेल में लिखी आत्मकथा आत्मकथाओं के माध्यम से सामाजिक राष्ट्रीय परिपेक्ष में स्वयं के द्वारा जिये गए यादो अनुभवों का साहित्य ही आत्मकथा है औपनिवेशिक काल के दौरान
विपरीत परिस्थितियों में जन्मी देश की जाग्रत व्यक्ति निष्ठ एव सामूहिक चेतना अभिव्यक्ति राष्ट्रीयता का प्रभाव आत्मकथाओं के विस्तार से प्रतिच्छाइत है सरदार वल्लभभाई की आत्म कथा को मात्र कृति नही इतिहास है देश की लंबी यात्रा की स्थिति परिस्थिति की सजीवता पवित्र देश भक्त के हृदय में रंगा हुआ है।
5--हिंदी नाटकों में राष्ट्रीयता--
हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकारों में जय शंकर प्रसाद अग्रगण्य है प्रसाद जी ने नाटकों के क्षेत्र में युगांतर स्थापित किया अभी तक जितने भी नाटक लिखे गए उनमें राष्ट्रीयता तो थी किंतु प्रसाद जी के नाटक अधिक परिणाम परक थे।सबसे पहले हिंदी में भारतेंदु जी बाद में प्रसाद जी ने नवीन प्रयोग किये उन्होंने राष्ट्रीयता को नाटक का मुख्य तत्व मानते हुए भरतीय इतिहास के गौरवमय अतीत से कथानक लेकर नाटकों का प्रणयन किया जो हर दृष्टि से अद्भुत है।राष्ट्र एक ऐसी चेतना है जो मनुष्य में इच्छा शक्ति एव संवेदना का सांचार करती है चेतना अवलोकन ही नही उनकी परख मूल्यांकन भी करती है राष्ट्रीयता के निर्माण में मुख्य रूप से भौगोलिक एव सांस्कृतिक एकता विद्यमान रहती है और इसका स्थूल एव सुदृढ अधार देश की भूमि है ।हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना का स्वरूप हमारे सामने है वह आधुनिक युग की देन है।राष्ट्रीय चेतना मनुष्य मन का परिष्कार करती है जिसे हिंदी नाटकों ने बड़ी ही जिम्मेदारी के साथ प्रस्तुत किया है।।
6-हिंदी फिल्मों में राष्ट्रीयता---
भरतीय फ़िल्म उद्योग राष्ट्रीयता के प्रभवी प्रसार का सशक्त माध्यम है
जिसके माध्यम से विशेषकर राष्ट्र के युवाओ के मध्य सार्थकता का समावेश
सांचार होता है एव सोच एव आचरण में परिलक्षित होता है ।हिन्दी फ़िल्म जगत द्वारा स्वतंत्रता संघर्ष आक्रमण युद्ध खेल इतिहास विद्रोह आदि अनेक विषयों के माध्यम से राष्ट्रीयता का सांचार किया जा रहा है।भारत फ़िल्म उद्योग स्वतंत्रता आंदोलन के समय ही उभरा 19 वी सदी में नतको की तरह इस बात की प्रबल संभावना थी कि फिल्मों के माध्यम से देश भक्ति के भाव का सांचार किया जा सकता है।1876 में लार्ड नार्थब्रुक्स प्रसाशन ने मंच से राजद्रोह समाप्त करने के लिये अधिनियम लागू किया ।1943में रामचंद्र नारायण द्विवेदी जी उर्फ प्रदीप के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट निकला।बॉम्बे टाकीज में भारत छोड़ो आंदोलन के समर्थन में अप्रत्यक्ष रूप में शासन के विरुद्ध लिखे गए गाने को लेकर जारी किया गया गाना #आज हिमालय कि चोटी से फिर हमने ललकारा है दूर हटो ए दुनियां वालो हिंदुस्तान हमारा है#
हिंदी फिल्म राष्ट्रीयता के सांचार में अपनी अहम भूमिका का निर्वहन करता है।
7-प्रवासी हिंदीभाषी साहित्य एव राष्ट्रीय भावना---
प्रवासी भारतीय जो संवेदनशील थे उन्होंने विदेश में अपने प्रवास के दौरान आने वाली समस्याओं एव अपने इर्द गिर्द घटित होने वाली घटनाओं को कलम के माध्यम से साहित्य द्वारा उजागर किया।प्रवासी हिंदी साहित्य का श्रीगणेश हुआ प्रवासी साहित्य भारतीयों के पलायन मुश्किलें जीवन संघर्ष की गाथा राष्ट्रीयता के संदर्भ में प्रस्तुत करता है
आधुनिक प्रवासी हिंदी साहित्य के विश्लेषण से पता चलता है भारत के बाहर दुनियां के कई देशों में हिंदी साहित्य रचा जा रहा है जिसमें राष्ट्रीयता की प्रधानता है।
निष्कर्ष--हिंदी साहित्य के वर्तमान एव इतिहास का अध्ययन करने से स्पष्ठ है कि हिंदी साहित्य के द्वारा बिभिन्न काल खंडों में विभिन्न विधाओं के माध्यम से राष्ट्रीय भावना को जागृत करने एव अक्षुण्ण रखने का अनुष्ठान आंदोलन सारगर्भित एव सकारात्मता के साथ किया गया।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।
Gunjan Kamal
25-Nov-2022 11:40 PM
👏👌
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Ayshu
18-Nov-2022 09:57 AM
Bahut khub
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